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Jagannath Puri Mandir: भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक|

जगन्नाथ पूरी मंदिर: भगवान कृष्ण का अनोखा रूप |

Jagannath Puri Mandir: जगन्नाथ पूरी मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है | यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है| पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर, जिसे भारत के चार धामों (तीर्थों) में से एक माना जाता है और इस प्राचीन मंदिर में हर साल लाखों भक्त आते हैं| इस मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है और इसके बारे में जानकारी आपको इस ब्लॉग में मिल जाएगी|

जगन्नाथ पूरी मंदिर के बारे में (About Jagannath Puri Mandir):-

यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है।जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। यह मंदिर हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना 12 वीं सदी में की गई थी। मंदिर का क्षेत्र 4,00,000 वर्ग फुट है और 120 से अधिक छोटे-मोटे मंदिर हैं| पुरी जगन्नाथ मंदिर को प्रति वर्ष हजारों पर्यटकों की भीड़ आती है। जगन्नाथ पुरी मंदिर का दर्शन करने के लिए आपको ओडिशा के पुरी शहर में जाना होगा। पुरी शहर में आपको अनेक मंदिर, समुद्र तट, सरोवर, मठ, तीर्थ और संस्कृति के दर्शनीय स्थल मिलेंगे|

मंदिर का प्रमुख आकर्षण है महाप्रसाद, जो 56 प्रकार का होता है। मंदिर में तीन मुख्य मूर्तियाँ हैं – भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा| मंदिर का सालाना रथयात्रा महोत्सव प्रसिद्ध है, जिसमें मुख्य मूर्तियाँ तीन सुसज्जित रथों में समुंहित होकर नगर की यात्रा को निकलती हैं|

जगन्नाथ पूरी मंदिर का इतिहास और महत्व (History and significance of Jagannath Puri temple in Hindi):-

इस मन्दिर का निर्माण कलिंग राजा अनंतवर्मन् चोडगंग देव ने 10वीं सदी में आरम्भ किया था। 12 वीं सदी में, ओडिआ शासक अनंग भीम देव ने मन्दिर को पूरा किया था| 16 वीं सदी में, मुस्लिम सेनापति काला पहाड़ ने मन्दिर को तोड़ा-मरोड़ा, परन्तु बाद में खुर्दा के राजा रामचन्द्र देब ने मन्दिर की पुनर्स्थापना की थी|

जगन्नाथ पूरी मंदिर(Jagannath Puri Mandir) के निर्माण से जुडी बहुत सारी कथाए प्रचलित है उनमे से एक कथा के बारे में हम जानेंगे…

इस कथा के अनुसार, मालवा के राजा इन्द्रद्युम्न को सपने में भगवान जगन्नाथ के मूर्ति के दर्शन हुए थे| तब उन्होंने कड़ी तपस्या की थी और उसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें बताया की वो पूरी के समुद्र किनारे जाये और उन्हें वहा एक लकड़ी का लट्ठा मिलेगा| भगवान विष्णु ने ये भी कहा की उसी लकड़ी उन्हें मूर्ति का निर्माण करना है| राजा ने ऐसा ही किया और उन्हें वो लकड़ी का लट्ठा मिल भी गया| उसने विश्वकर्मा, सृष्टि के कर्मकार, से मूर्ति का निर्माण करने को कहा|
लेकिन विश्वकर्मा ने शर्त लगाई, कि मूर्ति को 15 दिनों में पूरा करेगा, परन्तु मंदिर में प्रवेश करने से पहले मूर्ति को राजा या और कोई भी नहीं देख सकता|

विश्वकर्मा ने मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दिया था| 14वें दिन, मंदिर से हलकी-हलकी हथौड़ी की आवाज सुनाई पड़ी, पर 15वें दिन, सुनसानी हो गई | तो उत्सुकता से प्रेरित होकर, राजा मंदिर में प्रवेश करने को मुहूर्त (muhurta) का प्रतीक्षा किए बिना ही मंदिर में प्रवेश करते हैं| मंदिर में पहुंचते ही, उन्हें सपने में से साक्षात् ही प्रतीत होती हैं लकड़ी!

लेकिन, मंदिर में प्रतिमाओं के हाथ-पैर, सिर, आँखें और नाक अधूरे ही बने हुए हैं थे| विश्वकर्मा ने राजा को समझाया कि उन्होंने उनकी शर्त का उल्लंघन किया है, इसलिए मूर्ति पूरी नहीं हो सकी| राजा को पछतावा हुआ, परन्तु फिर भी उन्होंने मूर्ति को प्राण-प्रतिष्ठा करके मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया| तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ मन्दिर में स्थापित की गयीं थी|

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जगन्नाथ पुरी मंदिर के कुछ रहस्य(Jagannath Puri Mandir Mystery):-

जगन्नाथ मंदिर से जुडी कई रहस्यमय और चमत्कारिक बाते है….

हवा से विपरीत लहराता हुआ झेंडा:-

श्री जगन्नाथ पूरी मंदिर के ऊपर जो लाल झेंडा स्थापित होता है वो हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है| ऐसे क्यों होता है आजतक कोई बता नही सकता इसीलिए यह बहुत ही आश्चर्यजनक बात है| यह झेंडा इतना भव्य है की जब वो लहरता है तब इसे सब लोग देखते ही रहते है|

मंदिर की परछाई नहीं दिखती:-

यह मंदिर दुनिया का सबसे भव्य और ऊँचा मंदिर है| जगन्नाथ मंदिर 4 लाख वर्गफुट के क्षेत्र में फैला है और उसकी ऊंचाई लगभग 214 फिट है| हम सब जानते है की किसी भी वस्तु या इन्सान या फिर पशु पक्षियों की परछाई बनना तो विज्ञान का नियम है| लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की इस मंदिर की शिखर की छाया हमेशा अद्रुश्य ही रेहती है|

सुदर्शन चक्र:-

इस सुदर्शन चक्र की खास बात यह है की पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा|

मंदिर का रसोई घर:-

मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है| इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है इसका मतलब सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है यही इस रसोई की खास बात है| मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है| प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, लाखों लोगों तक को खिला सकते हैं|

समुद्र की ध्वनि:-

मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते|आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं| इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है|

गैर भारतीय धर्म के लोगो को प्रवेश नहीं है:-

इस मंदिर में गैर-भारतीय धर्म के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। माना जाता है कि ये प्रतिबंध कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और हमलों के कारण लगाए गए हैं| पूर्व में मंदिर को नुकसान पहुंचाने के प्रयास किए जाते थे|

जगन्नाथ पूरी मंदिर के प्रमुख त्योहार और उत्सव (Major festivals and celebrations of Jagannath Puri temple):-

जगन्नाथ पूरी मंदिर (Jagannath Puri Mandir)के हर उत्सव और त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाये जाते है तो जानते है उन त्योहारों के बारे में….

रथयात्रा: यह मंदिर का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण उत्सव है| हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को, मंदिर के तीनों मुख्य देवता- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा- को भव्य और सुसज्जित रथों पर स्थापित करके, मंदिर से 3 किमी. दूर स्थित मौसीमा मंदिर (Aunt’s Temple) की ओर प्रस्थान किया जाता है। इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु, पुरी के समुद्रतल से 56 मी. की ऊंचाई पर स्थित ‘सिंह-पहाड’ (Lion Hill) पर स्थित मंदिर के प्रांगन में, 14-15 हेक्टेयर (35-37) के क्षेत्र में, 4000 से 6000 पुलिसकर्मियों के सुरक्षा-प्रबंधों के साथ, 10-12 लाख (1-1.2 million) लोग पहुंचते हैं|

स्नानपूर्णिमा: यह मंदिर की एक महत्वपूर्ण पूर्णिमा है| जो हर साल ‘सन’ (Solar Calendar) के ‘Jyeshta’ (May-June) महीने में आती है| इस दिन 108 पीले, हलके लाल और हरे रंग के कुंभों से भरे गर्म पानी से मंदिर के तीनों देवताओं का स्नान कराया जाता है|

चंदन यात्रा: यह मंदिर का एक अन्य महत्वपूर्ण उत्सव है,जो हर साल ‘सन’ (Solar Calendar) के ‘Vaisakha’ (April-May) महीने में 42 दिनों तक मनाया जाता है। इसमें मंदिर के प्रतिमाओं को पूरी तरह से चंदन से समेटा जाता है, और उन्हें ‘नन्दीघोष’ (Nandi Ghosh) कहलाने वाली ‘सुभद्रा’ (Subhadra) की ‘रथ’ (Chariot) पर स्थापित करके, ‘नरेन्द्र सरोवर’ (Narendra Samovar) की ओर प्रस्थान किया जाता है, जहाँ प्रतिमाओं को ‘चप्पन-भोग’ (56 types of food) प्रसाद प्रस्तुत किये जाते है|

पुरी-महोत्सव’ (Puri Mahotsav): यह मंदिर का एक सांस्कृतिक महोत्सव है, जो हर साल ‘मकर-संक्रान्ति’ (Makar Sankranti) के पहले सप्ताह में 7-10 दिनों तक मनाया जाता है। इसमें पुरी की समृद्ध ’प्रतिभा’, ‘परम्परा’, ‘पुरुषार्थ’, ‘प्रेम’, ‘प्रकृति’, ‘प्रतिष्ठा’, ‘प्रकल्प’, ‘प्रतिक्रिया’, ‘प्रतिक्रमण’, ‘प्रतिकृति’, ‘प्रतिकर’, ‘प्रतिकुल’, ‘प्रतिकोल’ आदि विषयों पर विभिन्न कलाकारों, लेखकों, विद्वानों, साहित्यकारों, संगीतकारों, नृत्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा प्रस्तुतियां दी जाती हैं।

इसी प्रकार के बहोत सारे त्योहार जगन्नाथ पूरी मंदिर में मनाये जाते है|

इस प्रकार, हमने आपको जगन्नाथ पूरी मंदिर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी है। हमें उम्मीद है कि आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा।

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