Shree Radha Raman Temple: हम आज बात कर रहे है “श्री राधारमण मंदिर”(Shree Radha Raman Temple) की जो वृंदावन के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है| इस मंदिर के बारे में लोग कहते है की मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है उसे किसी ने बनाया नहीं है बल्कि वो मूर्ति अपने आप ही प्रकट हुई है|
आप को जानकर हैरानी होगी की इस मंदिर में एक ऐसा अग्निकुंड भी है जो तकरीबन 500 सालों से आज तक बिना माचिस के जल रहा है| तो dosto चलिए जानते है आखिर कहा है यह मंदिर…
Shree Radha Raman Temple (श्री राधारमण मंदिर) :-
श्री राधा रमण मंदिर गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है | यह मंदिर मथुरा के वृंदावन में स्थित है| मंदिर में प्रवेश करते ही आपको एक बड़ा सा हॉल दिखाई देगा जिसमे भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित है|
इस मंदिर में श्री राधारमण जी के ललित त्रिभंगी मूर्ति के दर्शन होते है| केहते है की मुघल शासन काल में वृंदावन के अनेक मंदिरों को तोडा गया था| इसीलिए इन मंदिरों में स्थापित इन मूर्तियों को यहाँ के पुजारियों ने अलग अलग जगह भेज दिया | लेकिन “श्री राधा रमण ” जी ने कभी भी इस मंदिर को नहीं छोड़ा|
श्री राधा रमण जी आज भी इस वृंदावन में ही स्थित है|आपको यह जानकर ताजुब होगा की “श्री राधा रमण ” जी की मूर्ति किसी ने बनायीं नहीं है बल्कि यह स्वयंम यहाँ प्रकट हुई थी| आखिर यह मूर्ति स्वयं कैसे प्रकट हुई ?
श्री राधा रमण जी के मूर्ति का रहस्य :-
इस मंदिर की स्थापना 500 साल पहले गोपाल भट्ट गोस्वामी ने की थी| श्री राधा रमण जी सन 1532 से ही वृंदावन में विराजित है| मंदिर के पीछे की साइड में श्री राधा रमण जी का प्रकट स्थल तथा गोपाल भट्ट स्वामी जी का समाधी मंदिर है| गोपाल भट्ट गोस्वामी जब 30 साल के थे तब वृंदावन में आये थे|
चैतन्य महाप्रभु के लापता होने के बाद गोपाल भट्ट गोस्वामी अपने भगवान से दूर होने लगे थे| अपने भक्त को वियोग की पीड़ा से मुक्त करने के लिए भगवान ने गोपाल भट्ट स्वामी को सपने में निर्देश दिया की यदि आप मेरे दर्शन चाहते है तो नेपाल की यात्रा करे| तभी गोपाल भट्ट स्वामी यात्रा के लिए निकल पड़े थे|
अपनी यात्रा के समय गोपाल भट्ट स्वामी नेपाल की प्रसिद्ध काली-गंडकी नदी में स्नान कर रहे थे तब अपने जलपोत को नदी में डुबाने पर कई शालिग्राम शिलाओ को अपने घड़े में प्रवेश करते देख वो चकित हो जाते है| वो शिलाओ को वापस से नदी में गिरा देते है लेकिन शिला उनके बर्तन में फिर से भर जाती है|
ऐसे एक एक करके पूरी १२ शिला उन्हें प्राप्त हो जाती है| उन्हें लेकर गोपाल भट्ट गोस्वामी वृंदावन धाम पहुच जाते है और वहा पर उन शिलाओ का पूजन करने लगते है|
ऐसा माना जाता है की एक बार एक धनी व्यक्ति वृंदावन में आये थे और उन्होंने गोपाल भट्ट स्वामीजी को विभिन्न प्रकार के कपडे और गहने दान में दे दिए | तब गोपाल भट्ट स्वामी ने कहा “मेरे पास तो बहुत छोटे शालिग्राम है इनको में गहने और कपडे कैसे पेहनावू ?” ये बात कहकर वो बहुत दुखी हो गए |
पौर्णिमा के दिन शाम को अपनी शालिग्राम शिलाओं को नैवेद्य अर्पित करने के बाद गोपाल भट्ट स्वामी ने उन्हें विकर की टोकरी से ढककर आराम करने के लिए रख दिया | रात में उन्होंने थोडा आराम किया और सुबह होते ही वो यमुना नदी में स्नान करने चले गए |
जब वो लौटकर आये उन्होंने पूजा करने के लिए अपने शालिग्राम को खोला तब उन्होंने देखा उन 12 शालिग्रामो में से सबसे मुख्य शालिग्राम एक मूर्ति के रूप में परिवर्तित हो चूका था| अब केवल 11 शिला और एक देवता थे| यह घटना सन 1599 में विक्रम संवंत वैशाख शुक्ल पौर्णिमा की है |
इस तरह एक पवित्र शालिग्राम शिला से श्री राधा रमण देवता के रूप में प्रकट हुए |श्री राधा रमण के मूर्ति की पीठ पीछे से शालिग्राम जैसे दिखाती है| अर्थात पीछे से देखने पर शालिग्राम के दर्शन होते है| इस मंदिर में एक रहस्य भी छुपा हुआ है| अब जानते है उस रहस्य के बारे में ….
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कैसे बिना माचिस के जल रही है रसोई :-
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की इस मंदिर के रसोई घर में 500 वर्षो से लगातार आग जलती आ रही है| आज तक यह आग बुझि नहीं है| मंदिर की परंपरा के अनुसार किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता।
कहा जाता है की यह आग शुरुवात में किसी माचिस से नहीं लगाई थी, बल्कि गोपाल भट्ट स्वामी जी ने अपने मंत्रो के शक्ति से जलाई थी| इतने साल बीत जाने के बाद भी यह आग नहीं बुझी| आज भी इसी आग पर मंदिर का प्रसाद बनाया जाता है|
Dosto आप कभी भी मथुरा वृंदावन में जाते है तो श्री राधा रमण मंदिर के दर्शन करना कभी ना भूले| यह मंदिर वृंदावन का सबसे सुंदर और रहस्यमय मंदिर है|
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