Kamakhya Temple – इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है, की साल में एक बार 3 दिनों के लिए माँ भगवती (सती) देवी मासिक धर्म की अवस्था से गुजरती है. उस दौरान वहा से बहने वाली ब्रम्हपुत्रा नदी का पानी भी लाल रंग का हो जाता है. यही वो स्थान है, जहा माँ भगवती देवी की महामुद्रा यानिकी योनिकुण्ड स्थित है.
दोस्तों, आपको तो पता ही होगा की, हमारी दुनिया में रहस्यमयी चीज़ों की कमी नहीं है. बहोत सारी ऐसी अनोखी और रहस्यमयी चीज़ें इस दुनिया में है, जिसके बारे में वैज्ञानिक अभी तक नहीं जान पायें है. हमने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहोत सी तरक्की कर ली है. लेकिन कभी कभी कुछ ऐसी चीजे हमारे सामने आ जाती है, जिसको देखके हम प्रकृति के आगे घुटने टेक देते है.
हमारे भारत देश में भी बहोत से ऐसे राज छुपे है, जिसके बारे में अभी तक सब लोक अनजान है. अगर रहस्यों की ही बात की जाये तो हमारे देश में बहोत सारे ऐसे मंदिर है, जिनके रहस्य आज भी अनसुलझे है. आज हम बात करने वाले है एक ऐसे मंदिर के बारे में, जो की 51 शक्तिपीठों में से एक है. हम बात करने वाले है कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) के बारे में.
पूर्व इतिहास (History Of Kamakhya Temple):-
राजा दक्ष अपनी बेटी सती की पसंद, जो की भगवान् शिव थे उनसे नाखुश थे. जब राजा दक्ष ने यज्ञ किया था. तब उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया था. लेकिन उन्होंने देवी सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. अपने पिता दक्ष से भगवान् शिव को आमंत्रित ना करने की वजह से, और भगवान् शिव को अपमानित होते देख कर, देवी सती बहोत ही क्रोधित हुई और उन्होने अपने शरीर को उसी ही यज्ञ में आत्मसमर्पित कर दिया.
इसी बिच अपनी पत्नी की हानि पर भगवान् शिव बहोत ही दुःख और क्रोध से त्रस्त हो गए. उन्होंने देवी सती के शरीर को अपने कंधे के ऊपर रखा और स्वर्ग में तांडव करने लगे. अन्य देवताओंने भगवान् शिव के क्रोध से डरके भगवान् विष्णु से मदत मांगी. भगवान् विष्णु ने देवी सती के शरीर को नष्ट करने के हेतु अपना सुदर्शन चक्र चलाया. जिसकी वजह से देवी सती के शरीर के टुकड़े हो गए. जिसके बाद भगवान् शिव ध्यान में चले गए.
विभिन्न मिथको और परम्पराओ के अनुसार ऐसा कहा जाता है की, भारतीय उपमहाद्वीप में देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े बिखरे हुए है और इसे ही शक्तिपीठ कहा जाता है.
कामाख्या मंदिर ये वही क्षेत्र है, जहा पे देवी सती के शरीर के योनि का भाग गिरा था.
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अम्भुबाची मेला (Ambubachi Mela):-
Ambubachi Mela हर साल में एक बार लगभग जून महीने में आता है. अम्भुबाची मेला तब होता है जब देवी मासिक धर्म की अवस्था से गुजरती है. इस मंदिर में एक शीलापिंड है, जिसकी पूजा देवी के रूप में होती है. और साल में अम्बुबाची पर्व में उसी पिंड से रक्त का स्राव होता है. इस ३ दिनों के लिए मंदिर बंद रहता है. आसपास के मंदिरो में भी इस ३ दिनों तक कोई पूजा नहीं की जाती.
ऐसा कहा जाता है की, उस गर्भगृह स्थित शीलापिंड पर सफ़ेद वस्त्र चढ़ाया जाता है. जो की बाद में लाल रंग का हो जाता है. वही वस्त्र भक्तों को प्रसाद के रूप में समर्पित किया जाता है. ये पानी लाल रंग का कैसे होता है, इसके बारे में बहोत research की गयी. लेकिन अभी तक ये रहस्य कोई सुलझा नहीं सका है. इसके बारे में अभीभी बहोत सारे मतभेद कायम है.
देवी के ऊपर लोगों की बहोत ज्यादा श्रद्धा है. जगभर से कई लोग इस मेले के दौरान कामाख्या मंदिर (kamakhya Temple) में दर्शन के लिए आते है. बहोत सारे साधु, तांत्रिक जो सालभर ध्यानधारणा में होते है उनके दर्शन भी आपको इसी मेले में मिल जायेंगे.
Kamakhya Temple जाने का पता (How to reach Kamakhya Temple):-
दोस्तों अगर आप इस मंदिर में जाना चाहते हो, तो आप आसाम के गुवाहाटी से जा सकते हो. जहा से Kamakhya Temple तक़रीबन 18KM की दुरी पर नीलाचल पर्वत पे है. हमारा suggestion है की जून महीने में अम्बुबाची मेले के दरमियान आप वहा पे visit करे.
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