हमारे भारत देश में बहोत सारी अदभुत और चमत्कारिक मंदिर है। हर एक मंदिर की अलग अलग कहानिया है। अभी तक हमने करनी माता मंदिर & लेपाक्षी मंदिर ऐसे बहोत सारे मंदिर के रहस्य के बारे में जानकारी ली है। आज के article में हम ऐसे ही एक मंदिर के रहस्य के बारे में जानने वाले है। Nellaiappar Temple – एक ऐसा मंदिर जिसके pillars में से संगीतमय मधुर धुन सुनाई देते है। तो जानते है इस मंदिर के रहस्य के बारे में।
नेल्लईअप्पर मंदिर , तिरुनेलवेली :- Nellaiappar Temple, Tirunelveli
हमारे यहा भारत में देवों के देव भगवान शंकर को इस सृष्टि का निर्माण कर्ता माना जाता है। सभी देवों में से भगवान शंकर का स्थान सबसे श्रेष्ठ है। इसलिए भगवान शंकर का हर एक मंदिर विलक्षण और अदभुत होता है।
हम बात कर रहे है ऐसे ही एक शिव मंदिर के बारे में, जिसका नाम है “नेल्लईअप्पर मंदिर” Nellaiappar Mandir।
नेल्लईअप्पर मंदिर का स्थान:- Where is Nellaiappar Temple?
दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवेली शहर में स्थापित है। यह मंदिर तिरुनेलवेली ज़िले में थामीराबरानी नदी (Thamirabarani river)के उत्तरी किनारे पर बनाया गया है।
यह मंदिर १४ एकर क्षेत्र में फैला हुआ है। तिरुनेलवेली को ब्रिटिश कल में “टिननेवेल्ली” (Tinnevelly) के नाम से जाना जाता था।
प्राचीन काल में इस जगह को “बांबू का जंगल” कहा जाता था। तिरुनेलवेली में भगवान शंकर और पार्वती का विवाह हुआ था ऐसे पुरानो में लिखा गया है। तिरुनेलवेली की ख़ासियत ये है की, इस जगह पर भगवान शिव ने नृत्य किया था। यहा रहनेवाले लोग इस मंदिर को अपना श्रद्धा स्थान मानते है। तो जानते इस नेल्लईअप्पर मंदिर के इतिहास के बारे में।
नेल्लईअप्पर मंदिर का इतिहास :- Nellaiappar Temple History
माना जाता है की, इस मंदिर का ज़्यादा से ज़्यादा क्षेत्र वेणु वैन में आता है, इसीलिए इसे ‘वेनवानम’ (Venuvanam) कहा जाता है। माना जाता है की नेल्लईअप्पर मंदिर का निर्माण पांडवो ने किया था। ७ वी शताब्दी के महाराजा Nindraseer Nedumaran ने इस मंदिर के गर्भगृह और गोपुरम का निर्माण किया था।
इस मंदिर का सबसे Famous संगीतमय स्थंभ महाराजा Nedumaran ने बनाया था। अगर ग़ौर से देखा जाए तो नेल्लईअप्पर और कांतिमथी ये दोनो अलग अलग मंदिर थे। उन दोनो मंदिरो के बीच थोड़ी सी जगह भी थी।
१६४७ में भगवान शिव के महान भक्त Thiru Vadamalaiappa Pillaiyan ने “चैन मंडपम” का निर्माण करके इन दो अलग अलग मंदिरो को जोड़ दिया था।
इस शहर को तिरुनेलवेली नाम कैसे मिला:- Mystery Behind the Name of Tirunelveli
तिरुनेलवेली शहर में एक ग़रीब ब्राह्मण रहता था।जिसका नाम वेद सरमा था। वो भगवान शिव का बहोत बड़ा भक्त था। हर रोज़ वो भीख माँगने जाता था और जो धान्य इकठा होता था उसे वो भगवान को अर्पण करता था।
एक दिन जब ब्राह्मण धान्य को सूखा रहा था तब अचानक से बारिश गिरना शुरू हो गयी। ब्राह्मण डर गया, और सोचने लगा की अचानक से बारिश कैसे शुरू हो गयी। उसको उसके धान्य की चिंता होने लगी, की अगर ये धान्य पानी में बह गया तो वो भगवान को क्या अर्पण करेगा। इसीलिए वो व्यथिथ हो गया था।
इस संकट समय पे उस वेद सरमा ने भगवान शंकर को प्रार्थना की, और प्रभु ने उसकी प्रार्थना सुन ली। भगवान शिव ने उसके धान्य को ढक दिया और उस धान्य के चारों और कुंपन कर दिया। इसीलिए इस जगह को तिरुनेलवेली (Tirunelveli) तिरु-नेल-वेलि यानी के तिरु-सुंदर, नेल-धान्य, वेलि -कुंपन के नाम से जाना जाता है।
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संगीतमय स्तंभ (Musical Pillars ):-
Nellaiappar Mandir के खम्बों में से music के सुर सुनाई देते है। आप यह सुनकर हैरान होंगे लेकिन यही सच है। इस मंदिर में तक़रीबन ४८ खम्बे ऐसे है जो एक ही बड़े पत्थर में बनाए गए है।
यहा की एक अलग बात यह है की, अगर हम एक स्तम्भ (Pillar) के ऊपर मारते है, तो उसका सुर हमें बाजु के खम्बे से भी सुनाई देता है।
मुर्ती बनाने के लिए जैसे अलग पत्थर का इस्तेमाल किया जाता है, ठीक उसी तरह इस नेल्लईअप्पर मंदिर के स्तम्भ (Pillars) बनाने के लिए इस्तेमाल किए हुए पत्थर प्राकृतिक रूप से अलग ही है।
प्राचीन मंदिरो के आर्किटेक्ट का भी कहना है की, संगीत बाहर निकलने वाले इन stones का निर्माण भी, प्रकृति का करिश्मा ही है, क्यूँकि यह आसान बात नहीं है।
शिल्पशास्त्र के अनुसार, Nellaiappar Temple के निर्माण में इस्तेमाल किए गए इन पत्थरों के तीन भाग है।
अलग अलग पत्थर – Types of Stones:-
- Masculine (पुल्लिंगी)(नर)
- Feminine (स्त्रिलिंगी)(मादा)
- Neuter (नपुंसक)
यह तीन पत्थर, तीन अलग अलग ध्वनी का निर्माण करते है।
तीन अलग अलग पत्थरों का इस्तेमाल भी अलग अलग तरीक़े से किया जाता है। जिसमें नर पत्थर का उपयोग केवल देवताओं की मूर्तियाँ बनाने में किया जाता है। जबकि मादा पत्थरों का इस्तेमाल देवी की मूर्तियाँ बनाने में किया जाता है। नपुंसक पत्थरों का उपयोग केवल आभूषण (Jewellery) बनाने के लिए किया जाता है।
इस प्रकार के पत्थरों का उपयोग ऐरावतेश्वर मंदिर और श्री चरणुमलयन मंदिर में भी मौजूद है।
इस Musical Pillars को देखा जाए तो, समझ आता है की, हमारी भारत की शिल्पकला इतने पुराने समय में भी कितनी ज़्यादा प्रगत थी। प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक रूप से ज़्यादा प्रगत थी जो आज भी दुनिया भर के लोगों को आश्चर्य चकित कर देती है।
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